Saturday, 22 February 2014

अपने जीनत पे तू इस दौर में कर फख्र ऐ दिल्ली
ज़माना कल को लिक्खेगा कि यह जीनत की दिल्ली है

कमला सिंह 'ज़ीनत'

शायरी करती है जीनत कोई मजाक नहीं 
शीकारी लफ्जो के पर को कतरना जानती है 

कमला सिंह 'ज़ीनत'


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