जब भी डाली निगाह बाग़ के हर डाली पर
तमाम डाली ये बोली निगाह क्यूँ डाली
----कमला सिंह 'ज़ीनत'
अर्श पर यूँ उड़ते है तो परिंदे एक साथ
एक तेरी बद दुआ के एक मेरे सब्र का
-----कमला सिंह 'ज़ीनत'
बद दुआ कि भीड़ लेकर पास आता है मेरे
वक़्त से शिक़वा करूँ तो मेरी रुसवाई है
-----कमला सिंह 'ज़ीनत'
दिया जला के मेरे हाथ पे रख दो आकर
उजाला तुझको, मेरे हाथ को छाला मंज़ूर
------कमला सिंह 'ज़ीनत
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