Saturday, 15 February 2014

जब भी डाली निगाह बाग़ के हर डाली पर 
तमाम डाली ये बोली निगाह क्यूँ डाली 
----कमला सिंह 'ज़ीनत'

अर्श पर यूँ उड़ते  है तो परिंदे एक साथ 
एक तेरी बद दुआ के एक मेरे सब्र का 
-----कमला सिंह 'ज़ीनत'

बद दुआ कि भीड़ लेकर पास आता है मेरे 
वक़्त से शिक़वा करूँ तो मेरी रुसवाई है 
-----कमला सिंह 'ज़ीनत'

दिया जला के मेरे हाथ पे रख दो आकर 
उजाला तुझको, मेरे हाथ को छाला मंज़ूर 
------कमला सिंह 'ज़ीनत 

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