Sunday, 9 February 2014

ख़याल 
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ज़िंदगी के बोझ तले 
इंसान कि सोच तले 
गुजरते  हैं ख्याल 
कुछ साँसों को रोके हुए 
कुछ तेज़ क़दमों से 
भागती हुई  हसरतें 
आगे बढ़ने कि चाह लिए 
साथ सबके भले पर 
मंज़िल को छूने की 
चाह में 
दाव  पर लगा कर खुद को 
हासिल करने के लिए  
कुछ को हार  नसीब 
और कुछ को जीत 
धाराशायी हो जाते है 
ख्याल 
और फिर शुरू होता है 
एक नया 
सिलसिला .......... 
कमला सिंह 'ज़ीनत'

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