अजीब सी बेचैनी है जिगर में ,दिल भी परेशाँ है कुछ
तकदीर है ज़िन्दगी की या फिर ,ज़िन्दगी हैराँ है कुछ
इक टीस सी उठती है ,इक हूक है बरपा मुझमें
मैं क्या करूँ ए दिल बता ,पोशीदा कुछ ,अयाँ है कुछ
--------------------------------कमला सिंह जीनत
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