आतुर है बरसने को मन का बादल
तरुनी सी अल्हड़ और चितवन चंचल
सीमा नहीं कोई उसकी बरसने की
घुमती है बरसने को मनभावन पागल
दीवानी सी घुमती है ये यहाँ से वहां
बरसती है फिर घूम कर जहाँ तहां
दीखती है इसके दिल की बेचैनी
होश नहीं इसको इसका भीगता आँचल
--------------------कमला सिंह ज़ीनत
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