सातवें आसमां के पार
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नीला अम्बर
उजले चादर में लिपटे बादल
रस भरी बहती नदियाँ
शांत वातावरण
सितारों की दुनिया
इक खामोश मंज़र
बेशुमार हंसो की जोड़ियाँ
हसते ,मुस्कुराते,उछलते,फुदकते
मोर,चीतल ,बुलबुल
रंग-बिरंगे गीत गाते तोते और मैना
संगीत की स्वर लहरी में नहाया
मेरा पूरा तन-बदन
मैं -हाँ मैं ……………………………
बना दी गयी थी
एक रात के लिए
अप्सरा ,परी ,हूर
नींद -उफ़ नींद ……………………
जाने क्यूँ उचट गयी कल की रात ?
ले गया था मेरा खुदा
ले गया था मेरा ईश्वर
ले गया था मेरा भगवान्
एक ख्वाब की दुनिया में
सातवें आसमान के पार।
----------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
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