------------ग़ज़ल -----------
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मैं खुद से खुद को भुला बैठी
दिल जो तुझसे लगा बैठी
भूल गयी,डगर मंजिल का
तेरे दर से ही राह मिला बैठी
नशा होता है क्या इश्क का
आँखों को जाम पिला बैठी
बंदगी इश्क में तेरे यार मैं
दिल का चमन खिला बैठी
अंजाम-ए-इश्क में हासिल
अश्कों से दामन भीगा बैठी
--------------कमला सिंह ज़ीनत
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [26.08.2013]
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सादर
सरिता भाटिया