चाँदनी से भर जाओ
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सितारे टाँके हुए चाँदनी लपेटे हुए
खड़ी हूँ सुर्ख कलाई में चूड़ियाँ डाले
स्याह रात का हर अक्स हूँ बदन पे लिए
लबों पे खुशबू सी मुस्कान का घेरा डाले
मुन्तजिर आँखों में में एक बेबसी समाई है
एक ही लम्हा फ़क़त जड़ दिया है किस्मत ने
दूर तक प्यास,प्यास,प्यास, ही है
अपने हिस्से में आज भी ज़ीनत
हसरतों का है जाल दूर तलक
आज भी दूर खड़ी हूँ कब से
देख मजबूर खड़ी हूँ कब से
यूँ तो देने के लिए सब कुछ है
आज मुझ सा कोई अमीर नहीं
और लेने के लिए कुछ भी नहीं
आज मुझ सा कोई गरीब नहीं
आज बे-रंग हूँ बे नूर हूँ मैं
चाँद हो चाद सा उतर आओ
मुझको फिर चाँदनी सा भर जाओ
मुझको फिर चाँदनी से भर जाओ
--------------------कमला सिंह ज़ीनत
13/08/13
आपकी यह रचना कल बुधवार (14-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeletethanku Arun
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