Tuesday, 27 August 2013

मैं और दुनिया

---------मैं और दुनिया ------
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अजीब दुनिया है 
दिल के दर्द को भी नहीं समझती 
पता नहीं है क्यों ?
ये किस मिटटी के बने है ?
मालूम नहीं 
शायद इनमे दिल ही नहीं। . 
वर्ना ये क्यों करते ऐसी बात 
सोचती हूँ मैं अक्सर 
क्या ये पत्थर से बने हैं ?
या इनमे दिल ही नहीं 
हो सकता है मेरी तरह ये बेवकूफ नहीं 
मुझसे ज्यादा अच्छा जानते हों 
नहीं …………… नहीं नहीं 
सारे  ऐसे नहीं हो सकते 
कुछ तो ज़ज्ब भी रखते होंगे
इंसानियत और प्यार भी होगा 
पर क्यों ?
क्यों पत्थर से दीखते हैं …… 
कही ऐसा तो नहीं की  ……………। 
मैं पागल हूँ.…… 
नहीं ऐसी तो नहीं मैं. 
फिर कोई क्यों नहीं समझता मुझे ?
अपनों की नज़रें भी 
कुछ ऐसी ही घूरती हैं 
जैसे कोई खता हो गयी मुझसे 
क्या करू ?
मैं पत्थर से नहीं बनी 
इंसान हूँ मैं 
मैं नहीं छोड़ सकती 
नहीं छोड़ सकती अपनी फितरत 
मैंने  सीखा है यही 
प्यार देना और प्यार लेना 
और विधाता भी यही चाहता है 
मुझसे 
हमेशा ……………… 
अनवरत……………   
-----------------कमला सिंह ज़ीनत 


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