सोचती हूँ बेवक्त क्यों चला आता है तू
क्यों जिंदा है मेरे ज़ज्बातों में तू
हर वक़्त घुमड़ता है बेचैन बादलों की मानिंद
आतुर है बस बरसने को तू
जब भी आता है ज़ेहन में मेरे
आकर तूफ़ान मचाता है तू
बावली सी होती हूँ ख्वाबों में जैसे
क्यों जिंदा है मेरे साँसों में तू
हसरतों को जगाता है
प्यास को क्यों बढ़ाता है तू
जी चाहता है ख़ुदकुशी कर लूँ
तेरी यादों से मैं
फिर भी मुझ से लिपट जाता है तू
हार जाती हूँ तेरे सपनों से मैं
जब आकर गले लगाता है तू
क्यों जिंदा है मुझ में ख्याल तेरे
क्यों हर वक़्त तड़पाता है तू
सांसे भी लेता है मुझ में
हर एक लम्हा मुझ में जीता है तू
क्यों जिंदा है अब तक मेरे सांसो में तू
क्यों जिंदा है मेरे ज़ज़बतों में तू
क्यों जिंदा है मेरे सांसों में तू
क्यों जिंदा है मेरे सांसो में तू
क्यों जिंदा है मेरे सांसों में तू
क्यों जिंदा है मेरे सांसो में तू
----------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
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