बुझा-बुझा समा क्यों है
खफा-खफा वफ़ा क्यों है
अश्कों के ये झरने क्यों हैं
मोती जैसे कतरे क्यूँ है
आज लब पे आह क्यों है
इश्क बेपरवाह क्यों है
मंजिल आज धुंधली क्यों है
राह ये बदली क्यों है
फलक,ज़मीं तनहा क्यों हैं
मौत का पहरा क्यों है
--------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
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