Sunday, 11 August 2013

वक़्त

मुद्दतों के बाद आज मुस्कुराना आया 
रोने के बाद आज फिर हँसाना आया 
फासले बहुत हैं हँसाने और रोने के दरमियाँ 
वक़्त के साथ ज़ख़्म ज़िन्दगी का भूलना आया 
तूफ़ान का दौर था,संभलना आया 
आँधियों को समेटना आया 
यादों को सहेजना आया 
ख्वाबों को लपेटना आया 
जाने क्या-क्या सोचना आया 
सैलाब आँसुओं का थामना आया  
हसरतों को सँवारना आया 
खुशियों को तलाशना आया 
दुश्मनों को भूलना आया 
और तो और
भूल-कर सब कुछ 
ज़िन्दगी को जिंदगी से लिपटना आया 
फिर से हँसना और रोना आया 
------------------कमला सिंह ज़ीनत 

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