पलकों से ख्वाब चुनती हूँ मैं
दिल के जख्मों को सिलती हूँ मैं
हसरतों के इस सुहाने सफ़र में
कशीदे जिंदगी के गढ़ती हूँ मैं
रोज़ जाती हूँ शहर में हसरतों के
सपने मोल वहां से लाती हूँ मैं
बनाती हूँ और बिगाड़ती हूँ उनको
दामन में अपने जड़ती हूँ मैं
सितारों की मानिंद चमकती हूँ मैं
टूटे तारों सी बिखरती हूँ मैं
आता है एक वक़्त ऐसा भी सफ़र में
तस्कीन जिंदगी का कज़ा में ढूंढ़ती हूँ मैं
-------------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
No comments:
Post a Comment