अजीब सी कशमकश है जिंदगी और वक़्त के दरमिया
जब वक़्त ने चाहा जिंदगी नहीं और
जिंदगी ने चाहा तो वक़्त नहीं
चलते हैं समानांतर दोनों एक ही रस्ते से
कभी जिंदगी कहाँ तो कभी वक़्त कहाँ
शायद मिलन की बात दूरियों को बढाती है
दूरियाँ फिर मिलने को तरसती है
इसे इतेफाक कहें या नसीब का लेखा
इनका मिलन भी है कुछ ऐसा अनोखा
जब भी मिलतें है पाबन्दी के साथ
या फिर मिलते नहीं रजामंदी के साथ
एक ने चाहां भी गर बाँहों को थामना
दुसरे ने किया फिर हालातों का सामना
तभी तो कशमकश अनबुझ पहेली है
ये जिंदगी अकेली है ये मिलन भी पहेली है
-------------------------कमला सिंह ज़ीनत
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