Saturday, 10 August 2013

जिंदगी और वक़्त

अजीब सी कशमकश है जिंदगी और वक़्त के दरमिया 
जब वक़्त ने चाहा जिंदगी नहीं और
जिंदगी ने चाहा तो वक़्त नहीं
चलते हैं समानांतर दोनों एक ही रस्ते से 
कभी जिंदगी कहाँ तो कभी वक़्त कहाँ  
शायद मिलन की बात दूरियों को बढाती है 
दूरियाँ फिर मिलने को तरसती है 
इसे इतेफाक कहें या नसीब का लेखा 
इनका मिलन भी है कुछ ऐसा अनोखा 
जब भी मिलतें है पाबन्दी के साथ 
या फिर मिलते नहीं रजामंदी के साथ 
एक ने चाहां भी गर बाँहों को थामना
दुसरे ने किया फिर हालातों का सामना 
तभी तो कशमकश अनबुझ पहेली है
ये जिंदगी अकेली है ये मिलन भी पहेली है
-------------------------कमला सिंह ज़ीनत  

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