Tuesday, 20 August 2013

ख्याल

सोचती हूँ बेवक्त क्यों चला आता है तू 
क्यों जिंदा है मेरे ज़ज्बातों में तू 
हर वक़्त घुमड़ता है बेचैन बादलों की मानिंद 
आतुर है बस बरसने को तू 
जब भी आता है ज़ेहन में मेरे 
आकर तूफ़ान मचाता है तू 
बावली सी होती हूँ ख्वाबों में जैसे  
क्यों जिंदा है मेरे साँसों में तू 
हसरतों को जगाता है 
प्यास को क्यों  बढ़ाता है तू 
जी चाहता है ख़ुदकुशी कर लूँ 
तेरी यादों से मैं 
फिर भी मुझ से लिपट जाता है तू 
हार जाती हूँ  तेरे सपनों से मैं 
जब आकर गले लगाता है तू 
क्यों जिंदा है मुझ में ख्याल तेरे 
क्यों हर वक़्त तड़पाता है तू
सांसे भी  लेता है मुझ में 
हर एक लम्हा मुझ में जीता है तू 
क्यों जिंदा है अब तक मेरे सांसो में तू 
क्यों जिंदा है मेरे ज़ज़बतों में तू 
क्यों जिंदा है मेरे सांसों में तू 
क्यों जिंदा है मेरे सांसो में तू 
----------------------कमला सिंह 'ज़ीनत' 
  

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