Tuesday, 27 August 2013

पलकों के ख्वाब

पलकों से ख्वाब चुनती हूँ मैं 
दिल के जख्मों को सिलती हूँ मैं 
हसरतों के इस सुहाने सफ़र में 
कशीदे जिंदगी के गढ़ती हूँ मैं 

रोज़ जाती हूँ शहर में हसरतों के 
सपने मोल वहां से लाती हूँ मैं 
बनाती हूँ और बिगाड़ती हूँ उनको 
दामन में अपने जड़ती हूँ मैं 

सितारों की मानिंद चमकती हूँ मैं 
टूटे तारों सी बिखरती हूँ मैं 
आता है एक वक़्त ऐसा भी सफ़र में  
तस्कीन जिंदगी का कज़ा में ढूंढ़ती हूँ मैं 
-------------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'

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