एहसासों के मोल
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तेरी दुनिया में
एहसासों का मेरे
कोई मोल नहीं
ऐसा लगता है जैसे
कचरे के डब्बे से
फेंकी हुई कोई चीज़ हो
वही एहसास जो कभी
तुम्हारे दिलो-दिमाग पर
छाये रहते थे
वही एहसास जिससे कभी
मदहोशी का जाम
पिया करते थे
वही एहसास जो कभी
तुम्हारे दिल की
धड़कन बढ़ा दिया करते थे
वही एहसास जिसकी
खुशबू से
तुम दिन रात
भीगे रहते थे …
और
आज वही कचरे में
पड़े सड़ांध मार रहे हैं
है न …?
--कमला सिंह 'ज़ीनत'
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11 - 06 - 2015 को चर्चा मंच पर बरसों मेघा { चर्चा - 2003 } में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
shukriya
Deleteबहुत खूब..
ReplyDeletethanku rashmi
Deleteहृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार ,बधाई. कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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