कब तक छुपाऊंगी मैं तुम्हें
कब तक परदादारी हो तुम्हारी
कब तक ढांप के रखूं तुम्हें
कब तक बचाऊं तीरे नज़र से
कब तक पोशीदा रख पाऊं
कब तक तुझे जाहिर न करूँ
कब तक ओझल रखूं
कब तक तेरे होने का शोर न हो
कब तक तू अयां न हो सके
कब तक तेरा ज़हूर न हो
कब तक तुम्हें बचाए रखूं
तू तो खुद ही रौनक-ए- तूर है
मसनद-ए- दीद पर मामूर है
तू ही जीनत का कोहिनूर है
तू ही जीनत का कोहिनूर है
कब तक परदादारी हो तुम्हारी
कब तक ढांप के रखूं तुम्हें
कब तक बचाऊं तीरे नज़र से
कब तक पोशीदा रख पाऊं
कब तक तुझे जाहिर न करूँ
कब तक ओझल रखूं
कब तक तेरे होने का शोर न हो
कब तक तू अयां न हो सके
कब तक तेरा ज़हूर न हो
कब तक तुम्हें बचाए रखूं
तू तो खुद ही रौनक-ए- तूर है
मसनद-ए- दीद पर मामूर है
तू ही जीनत का कोहिनूर है
तू ही जीनत का कोहिनूर है
सुन्दर
ReplyDeleteshukriya sir
Deleteबढ़िया
ReplyDeleteshukriya suman ji
ReplyDeletebahut bahut aabhar
ReplyDeleteजरूरत नहीं--क्योंकि जो नूर है--वह दिखता ही है.
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