मुहब्बत की कश्ती में
सवार होकर मैं
निकल आई बहुत दूर
बहुत ही दूर ....
जब किनारे पर
दूसरी ओर पहुँच कर
उतरना चाहती हूँ तो
कहते हो
लौट जाऊँ तन्हा
पर कैसे ,मुझे तो
पानी से डर लगता है
और फिर वो किनारा
रेत की लकीरों के साथ
एक हो चुका है
किस किनारे पर जाऊँ मैं ?
किस किनारे पर जाऊँ मैं ?
--कमला सिंह 'ज़ीनत'
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