फूलों से आगे
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मैं जब जब फूलों की बात करती हूँ
तुमने खुशबू का जिक्र छेड़ दिया
मैं गुलशन की रौनक ब्यान करती हूँ
तुम बहारों में उलझ पड़ते हो
कभी सुना भी करो मेरी कान बनकर
कभी महसूस तो करो मेरा होकर
सामने बैठो मेरे तन्हा होकर
मुकम्मल मुझमें ही खोकर रहो
चाहती हूँ जीना अपनी तरह से तुमको
तुम्हारी तरह भी जी लूंगी मैं
कहो तो
लेकिन अभी चुप रहो खामोश रहो
सुनो मुझे
फूलों की बात आई है
खुशबू तो आनी ही है
मैं खुद बहारों का जिक्र करूंगी
तितलियाँ भी आएंगी
कुछ भौंरे भी होंगे
मेरी ओर तको
देखो मेरी ओर
सुनो गौर से मुझे
ये मेरी ख्वाहिश है
मेरी ख्वाहिश
तो चलो बताती हूँ फूलों से आगे.........
-----कमला सिंह 'ज़ीनत'
18/06/15
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