बीते यादों के कतरों को
सन्दुक में सजाया था मैंने
नाजों से पाला था जिस पल को
खुशियों से सजाया था मैंने।
जाने कब टुटा वो ख्वाब मेरा
जाने कब रूठा वो रब मेरा
बस आस में उनकी जीती हूँ
दिल के पेबंद को सिलती हूँ।
यु तों लाखों होंगे धनवान यहाँ
पर मुझ जैसा कोई कहाँ
बेशकीमती पलों के खजाने हैं
जो तकदीर ने बांटें है।
---------------------कमला सिंह
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