Tuesday, 25 June 2013

तरुनी

तरुनी की तरुनाई सी,शीतल हूँ पुरवाई सी 
बिखर जाती हूँ मैं अधरों पे फूलों सी कुम्हलाई सी।

सौ चुप्पी के बाद एक आलसी अंगडाई सी 
मदमाती लेकिन अपने ही धुन में इठलाई सी।

रंग-बिरंगी तितलियों की मानिंद उडती हूँ लहराई सी 
खो जाती हूँ तरुनी की भांति राधा कृष्ण कन्हाई सी।
------------------------------------------------कमला सिंह 

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