Monday, 16 December 2013

---------ग़ज़ल--------
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दिल से उसको भुला नहीं सकती 
एक पल भी रुला नहीं सकती 

पी तो सकती हूँ ज़हर का प्याला 
उसको हरगिज़ पिला नहीं सकती 

वो मेरा बुत है जम चुका है बहुत 
चाह कर भी हिला नहीं सकती 

उसकी यादों में जागती आँखे
क्या करूँ मैं सुला नहीं सकती

रूठ जाता है जब भी वो मुझसे
भूक भी हो तो खा नहीं सकती

लाख दौलत हो मेरे मुट्ठी मे
वो बिके भी तो ला नहीं सकती

दूर मुझसे है वो बहुत ज़ीनत
जब भी चाहूँ बुला नहीं सकती
--------------कमला सिंह ज़ीनत

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