Wednesday 18 December 2013

गुनगुनी धुप में खिलते किरण सा चेहरा उसका ज़ीनत  
मेरी ज़िंदगी को इक नयी सुब्ह का अहसास कराता है 
------------कमला सिंह ज़ीनत 

उसकी याद की राख को पोटली में सहेज रखा था ज़ीनत ने 
दबे  चिंगारियों को सुलगा दिया हवाओं ने  फिर से 
-------------------कमला सिंह ज़ीनत 

uski yaad ki rakh ko potli me sahej rakha tha zeenat ne 
dabe chingaariyon ko sulgaa diya hawaon ne phir se 
--------------------kamla singh zeenat 

No comments:

Post a Comment