--------ग़ज़ल-----------
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मुझमे एक मचलता साया
मेरे अंदर चलता साया
ख्वाबों के उस चौराहे पे
रोज़ मेरा ही जलता साया
देखके मैं मजबूर बहुत हूँ
उसकी ओर निकलता साया
मेरे साये के साये में
उसका भी है पलता साया
कितनी है रंगीन मिज़ाजी
हर पल रंग बदलता साया
ज़ीनत तुझमे आखिर आकर
शाम तले इक ढलता साया
-----कमला सिंह ज़ीनत
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