कहता नहीं लबों से पर बयाँ कर जाती है निगाह उसकी
किस कदर बेचैन है रूह उसकी इक झलक पाने के लिए
-------------------------कमला सिंह ज़ीनत
खामोशियाँ उसकी मुझको बेचैन किये जाती है ज़ीनत
मेरे इक आह से भी तड़प उठती है उसकी रूह तलक
-----------------------कमला सिंह ज़ीनत
उन्वान -----------अप्सरा (२०)
****************************
रोज़ वो महफ़िलें सजाती हैं
मुझको तहज़ीब से बुलाती हैं
शायरी मेरी फ़क़त सुनने को
अप्सराएँ उतर के आती हैं
--------कमला सिंह ज़ीनत
roz wo meri mahfilen sajaati hain
mujhko tahzib se bulaati hain
shaayri meri faqat sunne ko
apsaraayen utar ke aati hain
-------kamla singh zeenat
No comments:
Post a Comment