Saturday, 21 December 2013

कहता नहीं लबों से पर बयाँ  कर जाती है निगाह उसकी 
किस कदर बेचैन है रूह उसकी इक झलक पाने के लिए 
-------------------------कमला सिंह ज़ीनत 

खामोशियाँ उसकी मुझको बेचैन किये जाती है ज़ीनत 
मेरे इक आह से भी  तड़प उठती है उसकी रूह तलक 
-----------------------कमला सिंह ज़ीनत 



उन्वान -----------अप्सरा (२०)
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रोज़ वो महफ़िलें सजाती हैं 
मुझको तहज़ीब से बुलाती हैं 
शायरी मेरी फ़क़त  सुनने को 
अप्सराएँ  उतर के  आती हैं 
--------कमला सिंह ज़ीनत 
roz wo meri mahfilen sajaati hain 
mujhko tahzib se  bulaati hain 
shaayri meri faqat sunne ko 
apsaraayen utar ke aati hain 
-------kamla singh zeenat 

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