--------नज़म ----------
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(कुछ नहीं वो ,फकत किताब सा है )
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रात दिन जिसकी जुस्तज़ू है मुझे
जो मेरे साथ साथ रहता है
जो मेरे साथ साथ चलता है
ढल के मासूम सा अल्फ़ाज़ों में
मखमली वर्क पे मचलता है
जो तख़य्युल में है खुश्बू बनकर
जिसका होना सुकून देता है
रात आँखों में बसर होती है
दिन गुज़र जाता है हवाओं सा
एक एहसास सुरसुरी बनकर
दौड़ा फिरता है पहलु से मेरे
एक सिहरन सी उठती रहती है
काँप जाती है मेरी पूरी हयात
सारे औराक़ जलने लगते हैं
फ़िक्र खो देता है खुद अपना हवास
सुर्ख हो जाती हैं आँखें थककर
मैं लरज़ जाती हूँ सर से पॉ तक
जागती आँखों में वो ख्वाब सा है
ये हक़ीक़त है माहताब सा है
ये हक़ीक़त है आफताब सा है
ये हक़ीक़त है लाजवाब सा है
कुछ नहीं वो ,फ़क़त किताब सा है
कुछ नहीं वो ,फ़क़त किताब सा है
--------कमला सिंह ज़ीनत
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