Monday, 31 August 2015

पिघल ही जाओ ऐ ज़ीनत कि उसकी लाज बचे
जुनूँ में आके तुझे मोम कह दिया उसने



कहा है उसने सभी से की खुशबूदार हूँ मैं
महक रही हूँ वो सच्चा शुमार हो जाए



बग़ैर पूछे मुझे लिख लिया है उसने अगर
उसी का हिस्सा हूँ लिख दो क़रारनामे में




दुआ ये है उसे जुगनू बना के ऐ मालिक
तमाम सुब्ह के बदले में रात दे मुझको



उसी से पूछिए रखता कहां कहां है मुझे
वही है डाकिया मेरा पता बतायेगा
कमला सिंह ज़ीनत

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