Sunday, 30 August 2015

एक अमृता और - ( भाग -2 )
आया था कल भी
यादों का डाकिया
दे गया था ख़त 
तुम्हारे नाम का
बेचैन रूह ने पढ़ा
बेचैन रूह की तड़प को ।
मिल गया मुझे हू ब हू
जो भेजा था तुमने
एहसास के गीले लिफाफ में।
आह भरते हुए लफ्ज़
बे-तरतीब बिखरे लम्हे
टूटती बनती लकीरों की तस्वीरें
सब कुछ ।
सुनो ....
ऐ मेरे नसीब
तुम्हारी ही तरह
इन एहसासों को
सीने से लगाये
आज भी ज़िंदा हूँ मैं
तुम्हारे लिए
सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे लिए
....कमला सिंह 'ज़ीनत'

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