Monday, 24 August 2015

मुक्तक
मैं दरवाज़े पे बैठी हूँ मुझे अंदर बुला माई
लगी है भूक मुझको प्यार से तू फिर खिला माई
खुदा से बोल के ज़ीनत की ख़ातिर आजा धरती पर
वही लकड़ी पर बैठी आंटे की चिड़िया बना माई
कमला सिंह 'ज़ीनत'

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