Monday, 10 August 2015

मेरी एक ग़ज़ल हाज़िर है 
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गीत  जैसा  है  वो  गुंजन  जैसा 
मिस्ले खुशबू है वो चन्दन जैसा 

एक  रिश्ता  अजीब  है  उससे 
मुझमें  रहता है वो बंधन जैसा 

लिपटा  रहता  है  वो  कलाई से 
और खनकता  है वो कंगन जैसा 

उसके होने का है एहसास मुझे 
मेरे  होठों  पे  है  चुम्बन  जैसा 

बेखुदी   में    मुझे  भिगोता   है 
वो बरस  जाता  है सावन  जैसा

उससे 'ज़ीनत' बहुत है प्यार मुझे 
दोस्त लगता है वो बचपन जैसा  
---कमला सिंह 'ज़ीनत'

2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-08-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2066 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई

    गीत जैसा है वो गुंजन जैसा
    मिस्ले खुशबू है वो चन्दन जैसा

    एक रिश्ता अजीब है उससे
    मुझमें रहता है वो बंधन जैसा

    लिपटा रहता है वो कलाई से
    और खनकता है वो कंगन जैसा

    उसके होने का है एहसास मुझे
    मेरे होठों पे है चुम्बन जैसा

    बेखुदी में मुझे भिगोता है
    वो बरस जाता है सावन जैसा

    उससे 'ज़ीनत' बहुत है प्यार मुझे
    दोस्त लगता है वो बचपन जैसा

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