Wednesday, 19 August 2015

एक अमृता और...( भाग-2)
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आज रात भी एक तूफान उठा था
यादों के समुन्दर में
ज़ोरदार हलचल मची हुई थी
गीला गीला पड़ा था
सारा का सारा मंज़र
सर से पांव तक नमी ही नमी पसरी थी
और बिखरा पड़ा था वजूद
सब कुछ अलसाया, बेजान
पल पल यादों की कतरनें बटोरती मैं
लहूलहान थी रात भर
ख़्वाबों वाली अलमारी खुली पड़ी थी
समुन्दर की बेलगाम लहरें
बहा ले गईं सब कुछ
मेरे हिस्से की वो हर रात गवाह है
लो देखो मेरी मुट्ठी में क्या है
यह ख़राशें
कुछ कतरनों को बचाने की ललक में उभरी हैं
ज़रा सूरज को बुलाते आना
तुम भी साथ ही आना
इश्क़ की अलगनी पर टांग दिया है मैंने
बची बचाई यादों की कतरनें
यह ख़ज़ाना तुम्हारा है
यह दौलत तुम्हारी है।
कमला सिंह 'ज़ीनत'

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