दिल के जज़्बात
Friday, 8 August 2014
शेर भी अपने लिये बा खुदा सितमग़र है ज़ख्म़ ही ज़ख्म़ बनाता हुआ इक ख़न्जर है उम्दह इक शायरी हो जाए इसी उल्झन में एक मिसरे के लिये जागना मुक़द्दर है
---कमला सिंह 'ज़ीनत'
1 comment:
Rajendra kumar
9 August 2014 at 20:09
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें।
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बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें।
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