स्वाधीनता दिवस की ख़ुशी में एक ग़ज़ल हाज़िर है दोस्तों
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अब हमें होश में आना होगा
अपनी मिटटी को बचाना होगा
भूल बैठे है लोग कुर्बानी
फिर उन्हें याद दिलाना होगा
टूट जाने का है बहुत इम्काम
दिल से नफरत को मिटाना होगा
रास्ते खो गए हैं जाने कहाँ
रास्ता और बनाना होगा
जिनपे ज़हरीले समर आतें हों
उन दरख्तों को गिराना होगा
'ज़ीनत' जी बोल दो गद्दारों से
अब यहाँ सर ना उठाना होगा
---------कमला सिंह 'ज़ीनत'
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