------------------ग़ज़ल----- -------------
लफ्ज़ लफ्ज़ का मआनी लिखने आता है
पानी पर भी पानी लिखने आता है
शैतानों की बस्ती में रह कर भी दोस्त
चार लफ्ज़ इंसानी लिखने आता है
धरती की हरियाली पर तो लिखती हूँ
फिर भी दुनिया फा़नी लिखने आता है
शीरीनी अल्फाज़ क़लम को है प्यारी
सच है तल्ख़ ज़बानी लिखने आता है
अपसदारी है हम को महबूब बहुत
लेकिन खींचातानी लिखने आता है
'जी़नत' जा़लिम को हमने जल्लाद लिखा
दानी को पर दानी लिखने आता है
------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
लफ्ज़ लफ्ज़ का मआनी लिखने आता है
पानी पर भी पानी लिखने आता है
शैतानों की बस्ती में रह कर भी दोस्त
चार लफ्ज़ इंसानी लिखने आता है
धरती की हरियाली पर तो लिखती हूँ
फिर भी दुनिया फा़नी लिखने आता है
शीरीनी अल्फाज़ क़लम को है प्यारी
सच है तल्ख़ ज़बानी लिखने आता है
अपसदारी है हम को महबूब बहुत
लेकिन खींचातानी लिखने आता है
'जी़नत' जा़लिम को हमने जल्लाद लिखा
दानी को पर दानी लिखने आता है
------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
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