एक अमृता और
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सिगरेट कहाँ है इमरोज़ ?
सुलगाओ न
सुनो ,दो सुलगाना
एक मेरे लिए और दूसरा खुद के लिए
आओ बैठो मेरे पास
कुछ अपनी कहें, कुछ तुम्हारी सुनें
दुनिया का दिल बहुत जल चुका
अब अपना दिल जलाएं
क्या हुआ … ?
पता है इमरोज़ .... यह धुआँ देखो
ज़रा गौर से देखो इसे,
विलीन होता देखो इसे
ऊपर की ओर
यह मैं हूँ …… देखो न
जो ऊपर चली जा रही है
अरे वाह ! ये मेरा भी आखिरी ही कश है
और तुम्हारा भी …
ये भी एक इत्तेफ़ाक़ ही है
हा हा हा हा ....
सब कुछ धुआँ धुआँ धुआँ धुआँ …
--कमला सिंह 'ज़ीनत'
bahut shukriya aapka
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