उलझा रहता है धागों में गिरह कि मानिंद ज़िंदगी में सबके
'ज़ीनत' क्या करूँ सुलझने कि बजाये और भी उलझ जाता है वो
------------------------------ ---कमला सिंह ज़ीनत
बम के बारूद के मानिंद आग है उसमें अजी ज़ीनत
जो आता है पास उसके जल जाता है
--------------कमला सिंह ज़ीनत
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