Friday, 22 November 2013

ज़िंदगी से खुद को रुबरु होने में एक वक़्त सा लगा 
वाकिफ होने में उसको ज़ीनत ज़िंदगी निकल गयी  
***************कमला सिंह ज़ीनत 
zindgi se khud ko rubru hone mein ek waqt sa laga 
wakif hone me usko zeenad zindgi nikal gayi 
*****************kamla singh zeenat 

ग़मों कि कब्र पर रोने से क्या फायदा भला
ग़मों के बोझ को ढोने से क्या फायदा भला  
यादों के शमशान से ज़िंदगी बेहतर है मेरी
दिलों  को दोष  देने से  क्या  फायदा  भला  
-------------कमला सिंह ज़ीनत 
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