Tuesday, 5 November 2013

अल्फ़ाज़ों से बयाँ  होती नहीं जो बातें कर जाती हैं आँखे बयाँ 
कहूँ क्या या ना कहूँ ज़ीनत उनके दिल कि दास्ताँ 
------------------------कमला सिंह ज़ीनत 

चलता है हर वक़्त ख्यालों में परछाई कि मानिंद वो ज़ीनत 
चाह कर भी रिहाई नहीं मिलती उसके ख्वाबों-ख्यालों से 
----------------------------------कमला सिंह ज़ीनत 

बयां करता है मुझसे जब हाल-ए -दिल अपना अजी ज़ीनत 
किसी और से फुर्सत न हो उसको तो बुरा लगता है
------------------------कमला सिंह ज़ीनत  

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