बेखौफ मेरे गेसुओं से खेलते हैं ख्य़ाल मेरे
ऐ ज़ीनत पनाह तेरा उसे भी पसंद है शायद
----------------------कमला सिंह ज़ीनत
लिखता है लहू से खतूत-ऐ-इश्क़ ज़ीनत तुझको
मज़मून समझाने का हुनर भी उसे आता है
इस कदर जुनूँ सवार है ग़ज़ल-ऐ-शायरी मुझ पर
ऐ वक़्त ठहर उन लम्हों में डूब जाने दे मुझे
-----------कमला सिंह ज़ीनत
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