Friday, 15 November 2013

------------नज़्म------------
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आधी रात को नींद खुल गयी मेरी 
करीब १ बजे रहे थे रात के 
लगा मानो  तुमने मुझे फिर से पुकारा है 
मानस पटल पर चल-चित्र की भांति 
तुम्हारी बातें एक-एक करके घूमने लगी 
हमेशा कहते हो न कि 
मैं तुम्हारे पास हूँ 
महसूसती भी हूँ तुमको 
   लेकिन 
मैं बहुत मायूस हो गयी 
जानते हो क्यूँ ?
मैंने जब हाथ बढ़ाया 
छूना चाहा तुमको 
तुम्हारे अक्स को 
लेकिन वो सिर्फ हवाओं में लहराकर रह गए 
हक़ीक़त की दुनिया से दूर 
कहीं परे है ये ख्वाबों कि दुनिया 
रूहों कि दुनिया में भटकती हूँ मैं 
शायद वहीँ मिलते है दोनों 
आँखें नम हो गयीं मेरी 
जब तुम नहीं मिले 
तुम हमेशा साँसों में हो मेरे 
धड़कन में हो 
वजूद में हो 
परन्तु इस  …
इस हक़ीक़त कि दुनिया से दूर 
रूहों कि दुनियां में 
जहाँ सिर्फ आत्माओं का मिलन होता है 
चलो कोई बात नहीं 
गिला भी नहीं मुझे 
ये एहसास भी काफी है मेरे लिए 
जल्दी ही मिलूंगी तुमसे 
ख्वाब में नहीं 
हक़ीक़त में 
उसी रूहों कि दुनियां में 
जहा सपने सच होंगे 
मेरी उंगलियां तुम्हे महसूस कर पाएंगी 
हमारी मंज़िल भी वही है 
इस धरती पर नहीं 
एक खूबसूरत सी दुनिया 
जहाँ हसरतें पूरी होंगी 
इंतज़ार ख़त्म होगा 
इंतज़ार करुँगी मैं वहाँ ....... 
आना पास मेरे
या तुम करना इंतज़ार मेरा 
मैं आउंगी तुम्हारे पास 
जल्दी  …… 
बहुत जल्दी  …… 
अलविदा 
अलविदा 
---कमला सिंह ज़ीनत 

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