Saturday, 2 November 2013

तू जानता क्यूँ नहीं ,तू मानता क्यूँ नहीं 
परछाई है ज़ीनत तेरी महसूसता क्यूँ नहीं 
------------------------कमला सिंह ज़ीनत 

इश्क़ तू बेहिसाब करता है जान भी बेहिसाब देता है 
है क्या कमी की तू इश्क़ इश्क़ करता है 
---------------------कमला सिंह ज़ीनत 


बांवला भी है और थोड़ा पागल भी शायद वो ज़ीनत 
ज़िद में भूल जाता है रिश्ते कि तल्ख़ियाँ भी 
------------------------कमला सिंह ज़ीनत 

ज़िंदगी हिस्ट्री ही नहीं मिस्ट्री भी है उसकी अजी  ज़ीनत 
नजदीकियाँ बढ़ते ही गहराईयों में उतर जाती है ज़िंदगी 
-----------------------कमला सिंह ज़ीनत  

1 comment:

  1. सुंदर भावपूर्ण, बेहतरीन !!
    !! प्रकाश का विस्तार हृदय आँगन छा गया !!
    !! उत्साह उल्लास का पर्व देखो आ गया !!
    दीपोत्सव की शुभकामनायें !!

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