सुभो-शाम करना याद आदत है मेरी
कैसे भूल जाऊ दिल से चाहत ये तेरी।।
कैसे भूल जाऊ दिल से चाहत ये तेरी।।
ढेरों ख्वाब बुनती हूँ ख्यालों में ऐसे,
सोचती हूँ निकलू तेरे जालों से कैसे।।
वक़्त का पता लगता नहीं मुझे,
उलझी रह जाती हूँ सवालों में ऐसे।।
घिरती जा रही है जिंदगी उलझनों में ऐसे
अपने ही बनाये सवाल और जबाबों में जैसे।।
..............कमला सिंह .........
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