Friday, 31 May 2013

कातिल

कातिल थी अदाए उसकी 
जवानी का जोर था ,
चलाया जो तीर उसने मुझपर 
ना हलचल न शोर था।
बन बैठी मैं भी कातिल अपना 
उसकी दिल्लगी का सुरूर था, 
कैद मिली खुद के माजी के हाथों  
ये मेरे दिल का कसूर था।।
---------कमला सिंह ---

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