क़त्ल करता है इंसान अपनी ज़मीर का
चंद सिक्कों के खातिर ही ,
कातिल भी बन जाता है अपने ईमान का
पापी पेट के खातिर भी।
---------कमला सिंह
जिंदगी की चाहत से मरहूम कर दिया तूने,
सुभो-शाम करना याद आदत है मेरी
तेरे दीदार के लिए हम भटके दर-बदर
मासूम सा दिखता है बचपन 