हमारे सांचे में दिन रात ढल रहा है वो
जहाँ पुकारूं वहीं से निकल रहा है वो
अजीब खुशबू है हर्गिज़ बयां नहीं होगा
मैं चल रही हूँ मेरे साथ चल रहा है वो
जहाँ पुकारूं वहीं से निकल रहा है वो
अजीब खुशबू है हर्गिज़ बयां नहीं होगा
मैं चल रही हूँ मेरे साथ चल रहा है वो
No comments:
Post a Comment