Tuesday, 19 May 2015

हमारे सांचे में दिन रात ढल रहा है वो
जहाँ पुकारूं वहीं से निकल रहा है वो
अजीब खुशबू है हर्गिज़ बयां नहीं होगा
मैं चल रही हूँ मेरे साथ चल रहा है वो

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