Monday 11 May 2015

मेरी एक ग़ज़ल पेश है आपके हवाले 
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जीत हिस्से में तू लिख ले ,मुझे हारा कर दे 
एक   बेनूर  स्याह   टूटा   सितारा   कर  दे 

नाम लिख कर मेरा नफ़रत से मिटा दे ख़त से
मुझको क़िस्मत का मेरे दोस्त तू मारा कर दे 

तुम रहो मीठा ही अब ओस की  बूंदें  बनकर 
मेरी  आँखों के  समुन्दर  को  तू खारा कर दे 

ठोकरें  खाना  लिखा  है  मुझे  दर-दर  तौबा
थाम  कर  हाथ  मेरा  दोस्त  किनारा कर दे 

ऐ खुदा उसकी ही क़िस्मत में लिखी  जाऊं मैं 
मुझको  इस  दुनिया  में पैदा तू दुबारा कर दे  

तू  सलामत  रहे  ऐ  दोस्त  बलाओं  से  बचे 
रंजो-ग़म  जितने  हैं  अपना तू हमारा कर  दे 
------डॉ. कमला सिंह 'ज़ीनत'

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