वो ताज़े फूल का झूला था जिसमें झूल गई न चाहा फिर भी दिलो जान से क़बूल गई अजब हुआ ये असर मुझपे क्या बताएँ हम किसी को याद ही रखने में खुदको भूल गई
डा.कमला सिंह 'ज़ीनत'
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