किस्सा मुख्तसर
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यदि मुझे
फिर आना पडे धरती पर
तो चाहूंगी बूंद बनूँ
तपती दोपहरी में
प्यासी गौरैया की चोंच पर टपकूं
और फिर
एक बूंद बनूँ
फिर आना पडे धरती पर
तो चाहूंगी बूंद बनूँ
तपती दोपहरी में
प्यासी गौरैया की चोंच पर टपकूं
और फिर
एक बूंद बनूँ
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