Sunday, 29 June 2014

चार मिसरे 
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शाम हो जिंदगी सवेरा हो
एक धरती पे घर भी मेरा हो
शाख जब तक हरे नहीं होंगे
कैसे चिडियों का फिर बसेरा हो
--कमला सिंह 'ज़ीनत'

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